वास्तु शास्त्र के अनुसार पूजा घर कैसा होना चाहियें?

Admin
वास्तु शास्त्र के अनुसार पूजा घर

दोस्तों लगभग हर हिंदू परिवार के घरो में देवी-देवताओं के अलग अलग स्थान होता है,और कुछ लोगों के घरों में छोटे छोटें मंदिर होते हैं तो कुछ लोग भगवान के लिए अलग से ही एक कमरा बनवा देते हैं और वास्तु शास्त्रों के हिसाब से घर में देवी- देवताओं का स्थान होने पर पूरे परिवार पर भगवान की असीम और विशेष कृपा बनी रहती है। 

घर के मंदिर में हमेशा कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो चमत्कारी फल प्राप्त होते हैं। और परिवार के लगभग हर सदस्यों को हर काम में बहुत ही अच्छी कामयाबी मिलती है और पैसों की कोई भी समस्या जीवन में नहीं रहती है।



vastu-puja-ghar



कुछ बातें जिन्हें घर के मंदिर के संबंध में ध्यान रखना चाहिए :-


दोस्तों भगवान की भक्ति असीम सुखों को देने वाली और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली होती है। और इसी वजह से हम सभी के घरों में भगवान के मंदिर ज़रूरी रूप से बनाए जाते हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार भी घर में देवस्थान यानी मंदिर बहुत जरूरी बताया गया है।

वस्तु शास्त्र के अनुसार मंदिर के महत्व को देखते हुए क़ुछ ज़रूरी बातें


- दोस्तों हमेशा ध्यान रहे कि शौचालय और पूजा घर बिलकुल पास-पास नहीं होना चाहिए।यह ग़लत और अशुभ होता हे ऐसा करने पर मंदिर की पवित्रता ख़राब हो जाती है।


- घर में जहां भी पूजा स्थल हो वहां कुछ हिस्सा बिलकुल खाली रखना चाहिए।छोटी सी जगह में मंदिर न हो तो अच्छा हे।मंदिर के आसपास कम से कम इतनी जगह ज़रूर रखें जहां आसानी से बैठा जा सकता हो।

दोस्तों घर में पूजा स्थल का होना शुभ माना जाता है जिस से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता रहता है। घर की पवित्रता भी भंग नहीं होती और मन में ख़ुशी बनी रहती है

मंदिर में हर दिन नियमित रूप से, दीपक जलाने और अगरबत्ती जलाने से वातावरण ख़ुशबूदार रहता हे और बीमारी वाले कीटाणुओं से रहित रहता है।और कोई भी कीटाणु घर में प्रवेश नहीं करते हैं और सदस्य हमेशा खुश और स्वस्थ रहते हैं। चिकित्सा संबंधी कार्यों में धन का व्यय नहीं होता है।

- सबसे ज़रूरी बात पूजा स्थल पूर्वी या उत्तरी ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में ही होना चाहिए क्योंकि ईश्वर की शक्ति ईशान कोण से प्रवेश कर कर नैऋत्य कोण (पश्चिम-दक्षिण) से बाहर निकलती है।और इसका एक हिस्सा शरीर द्वारा ग्राह्य बायोशक्ति में बदलकर जीवन के लिए उपयोगी बनाता है।

- और दोस्तों पूजा करते समय यदि हमारा मुंह पूर्व में हो तो उत्तम औरबहुत अच्छे फल की प्राप्ति होती है।और पूजा करने वाले का मुंह पश्चिम में हो तो बहुत अधिक शुभ माना जाता है इसके लिए पूजा स्थल का द्वार पूर्व की ओर ही होना चाहिए।

- और हाँ एक बात और दोस्तों पूजा स्थल के नीचे कोई भी अग्नि संबंधी वस्तु जैसे इन्वर्टर प्लग या विद्युत मोटर नहीं होनी चाहिए।और इस स्थान का प्रयोग धार्मिक पुस्तकें,पूजन सामग्री, शुभ वस्तुएं रखने के लिए किया जाना चाहिए।

पूजा का एक निश्चित समय

पूजा का एक समय होना चाहिए। जैसे ब्रह्म मुहूर्त सवेरे 3 बजे से या फिर दोपहर 12 बजे तक के पूर्व का समय रखे।ईशान कोण में मंदिर सबसे अच्छा रहता है। हमारा मुँह पूजा के समय ईशान, पूर्व या उत्तर में होना चाहिए, जिससे हमें सूर्य की ऊर्जा एवं चुंबकीय ऊर्जा मिल सके। इससे हमारा दिन भर शुभ रहे।


मन को पवित्र रखें

दोस्तों मन को पवित्र रखें। दूसरों के प्रति के लिए सदभावना रखें तो आपकी पूजा सात्विक और बहुत पवित्र होगी और ईश्वर आपको हजारो गुना देगा। आपके दुख ईश्वर पर पुरा भरोसा करके ही दूर हो सकते हैं।

कम से कम प्रतिमाएँ

 पूजा घर के अंदर कम से कम प्रतिमाएँ, छोटी तस्वीर (लघु आकार की), पाठ, मंत्रोच्चार, कम से कम समय एकांत में रहिए तो सही अर्थों में पूजा-प्रार्थना सार्थक होगी। एक 'सद्गृहस्थ' को यह नियम अपनाने से घर-परिवार में सुख-शांति आएगी। ईश्वर की सेवा में कुछ दान-पुण्य, गौ-सेवा, मानव सेवा कीजिए। 


घर के सबसे शुद्ध और निर्मल स्थानों में पूजा कक्ष को माना जाता है। यहीं से व्यक्ति अपने दिन की शुरुआत करता है। यही वो जगह है जहां बैठकर हम अपनी पूजा, प्राथनाएं और ध्यान करते हैं। पूजा कक्ष में देवताओं का निवास होता है इसलिए हम यहां शांति से जुड़ते है और शांति चाहते भी है।

Related Articles:


Final Words:-


हमारा उद्देश्य प्राचीन वास्तु सिद्धांतो को अपनाकर लोगो को आसान तरीके से वास्तु ज्ञान और सिद्धांतो को समझाकर उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना है। इसलिए अगर आपअपने पूजा कक्ष को अधिक सकारात्मक और शांतिमय बनाना चाहते है तो Dainik Jankari के सरल व सुविधाजनक उपायों को अपनाएं और एक समृद्ध जीवन जियें। 

हम आशा करते है कि वास्तु शास्त्र के अनुसार पूजा घर कैसा होना चाहियें? आपको समझ आ गया होगा वास्तु की और अधिक पोस्ट पढने के लिए यह क्लिक करे



Tags
To Top