वास्तु अनुसार दिशाओं का महत्व

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 वास्तु अनुसार दिशाओं का महत्व


वास्तु विज्ञान∕शास्त्र जिसे भवन निर्माण कला में दिशाओं का विज्ञान भी कहा जा सकता है, इसे समझाने के लिए सर्वप्रथम दिशाओं के विषय में जानना आवश्यक है। हम सभी जानते हैं कि ज़मीनी स्तर Two dimension में दिशाएँ होती हैं आठ – पश्चिम, उत्तर, वायव्य, नैऋत्य,पूर्व, ईशान, दक्षिण व आग्नेय। 

वास्तु अनुसार दिशाओं का महत्व



और ऊपर की और आकाश व नीचे की और पाताल को सम्मिलित करने पर (Three dimension) 10 दिशाओं में पूरा भूमंडल मतलब संसार व्याप्त है और यह भी कहा जा सकता है कि पूरे संसार को एक स्थल में केन्द्र मानकर 10 दिशा में व्यक्त किया जा सकता है।

सदैव ध्यान रखना चाहिए समय दिशाओं का 


आवास हो या फिर कार्यालय का निर्माण कुछ भी करते समय दिशाओं का हमेशा ध्यान रखना चाहिए। सहीं दिशाओं का चुनाव नहीं करने के कारण हमें नकारात्मक ऊर्जा मिलती रहती हे और कोई भी काम सही रूप से संपन्न नहीं हो सकेगा। कोई भी निर्माण करने से पहले वास्तु शास्त्र की सहायता से हम अधिक ऊर्जावान बन सकते हैं। यह सकारात्मक ऊर्जा के साथ ही भाग्योदय में भी सहायता करता हैं।

उत्तर दिशा से


चुम्बकीय तरंगों का भवन में प्रवेश होता हैं। चुम्बकीय तरंगे मानव शरीर में बहने वाले रक्त संचार एवं स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। अतः स्वास्थ्य की दृष्टि से इस दिशा का प्रभाव बहुत बढ़ जाता हैं। स्वास्थ्य के साथ ही यह धन को भी आकर्षित करता हैं। इस दिशा में निर्माण में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना बहुत ही ज़्यादा आवश्यक हैं मसलन उत्तर दिशा में भूमि तुलनात्मक रूप से नीची होना चाहिए तथा बालकनी का निर्माण भी इसी दिशा में करना चाहिए। बरामदा, पोर्टिको और वाश बेसिन आदि इसी दिशा में होना चाहिए।

उत्तर-पूर्व दिशा में


दोस्तों देवी देवताओं का निवास स्थान होने के कारण यह दिशा दो प्रमुख ऊर्जा का मिलन हे हैं। पूर्व दिशा और उत्तर दिशा दोनों इसी स्थान पर मिलती हैं। और इस दिशा में ही चुम्बकीय तरंगों के साथ साथ सौर ऊर्जा भी मिलती हैं। इसलिए इसे देवताओं का स्थान अथवा ईशान कोण दिशा कहते हैं। और इस दिशा में ही सबसे अधिक खुला स्थान होना चाहिए। स्वीमिंग पूल और नलकूप भी इसी दिशा में बनवाना चाहिए। घर का मुख्य द्वार इसी दिशा में सबसे अच्छा होता हैं।

पूर्व दिशा ऐश्वर्य


पूर्व दिशा आराम व प्रसिद्धी के साथ सौर ऊर्जा भी देती हैं। इसीलिए भवन बनवाते समय इस दिशा में अधिक से अधिक खुला स्थान छोड़ देना चाहिए। इस दिशा में भूमि थोड़ी नीची होना चाहिए।खिडकियां और दरवाजे भी पूर्व दिशा में बनाना सही रहता हैं। पोर्टिको भी पूर्व दिया में बनाना चाहिए बालकनी बरामदा, और वाशबेसिन आदि इसी दिशा में रखना चाहिए। बच्चे भी इसी दिशा में मुँह करके पढ़ें तो अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं।

उत्तर-पश्चिम दिशा में


दोस्तों इस दिशा में भोजन कक्ष बनाएं यह दिशा वायु का बहुत अच्छा स्थान हैं। इसीलिए भवन बनवाते समय गोशाला, और गैरेज बेडरूम इसी दिशा में बनाना सही माना गया है। सेवक कक्ष भी इस दिशा में ही बनवाना चाहिए।

पश्चिम दिशा में


इस दिशा में टायलेट बनाएं यह दिशा सौर ऊर्जा की विपरित दिशा हैं इसीलिये इसे अधिक से अधिक बंद रखना चाहिए। ओवर हेड टेंक इस दिशा में बनवाना चाहिए। भोजन कक्ष,, टाइलेट भी इसी दिशा में बनवानी चाहिए। इस दिशा में भवन और भूमि तुलनात्मक रूप से ऊँची होना चाहिए।

दक्षिण-पश्चिम दिशा में


घर के मुखिया का कक्ष वास्तु नियमों में इस दिशा को राक्षस और नैऋत्व दिशा के नाम से जाना गया हैं। परिवार के मुखिया का कक्ष इसी दिशा में सबसे अच्छा होता है। परिवार के मुखिया का कक्ष इसी दिशा में होना चाहिए। सीढ़ियों का निर्माण भी इसी दिशा में होना चाहिए इस दिशा में खुलापन जैसे खिड़की, दरवाजे आदि बिल्कुल न निर्मित करें। किसी भी प्रकार का गड्ढा, नलकूप और शौचालय का होना इस दिशा में वास्तु शास्त्र के अनुसार ग़लत हैं।

दक्षिण-पूर्व दिशा में

सेप्टिक टेंक किचिन, बनाना उपयुक्त होता है। यह दिशा अग्नि प्रधान हैं और इस दिशा में अग्नि से संबंधित कार्य जैसे कि, ट्रांसफार्मर, किचिन जनरेटर ब्वायलर आदि इसी दिशा में होना चाहिए।

दक्षिण दिन यम की दिशा


यहां धन रखना उत्तम होता हैं। यम का आशय मृत्यु से होता है। इसलिए इस दिशा में खुलापन, किसी भी प्रकार के गड्ढे और शैचालय आदि किसी भी स्थिति में निर्मित करें। भवन भी इस दिशा में सबसे ऊंचा होना चाहिए। फैक्ट्री में मशीन इसी दिशा में लगाना चाहिए। ऊंचे पेड़ भी इसी दिशा में लगाने चाहिए। इस दिशा में धन रखने पर बहुत ज़्यादा वृद्धि होती हैं। कोई भी इंसान इन दिशाओं के हिसाब से कार्यालय, आवास, दुकान फैक्ट्री का निर्माण कर धनवान हो सकता हैं।

पूर्व-दक्षिण में बनी सीढ़ियाँ अत्यंत शुभ


वास्तु शास्त्र के अनुसार मकान में सीढ़ी या सोपान पूर्व दिशा या दक्षिण दिशा में होना चाहिए। यह बहुत ही शुभकारी होता है। और सीढ़ियाँ मकान के पार्श्व में दक्षिणी व पश्चिमी भाग की दाईं ओर हो, तो उत्तम हैं। अगर आप मकान में घुमावदार सीढ़ियाँ बनाने की प्लानिंग कर रहे हैं, तो आपके लिए यह जान लेना आवश्यक है कि सीढ़ियों का घुमाव सदैव पूर्व से दक्षिण, दक्षिण से पश्चिम, पश्चिम से उत्तर और उत्तर से पूर्व की ओर रखें। चढ़ते समय सीढ़ियाँ हमेशा बाएँ से दाईं ओर मुड़नी चाहिए। एक और बात, सीढ़ियों की संख्या हमेशा ही विषम होनी चाहिए। और यह एक सामान्य फार्मूला है- सीढ़ियों की संख्या को 3 से विभाजित करें तथा शेष 2 रखें-बस आपको वास्तु दोष दूर करने के लिए दक्षिण-पश्चिम दिशा में एक कमरा बनवाना चाहिए। और सीढ़ियाँ अगर उत्तर-पूर्व दिशा में बनी हों, तो। तिजोरी मकान में गल्ला कहाँ रखना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार मकान में तिजोरी-गल्ला, नकदी, कीमती आभूषण आदि सदैव उत्तर दिशा में रखना शुभ होता है। क्योंकि कुबेर का वास उत्तर दिशा में होता है इस लिए उत्तर दिशा की ओर ही मुख रखने पर धन में बहुत ही ज़्यादा वृद्धि होती है।
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