बच्चों आज हम आपको 4 शिक्षाप्रद कहानियाँ (Hindi Stories) सुनाने जा रहें हैं इन कहनियों का मजा लो और जो शिक्षा मिले उसे अपने जीवन में अपनाओ
आलस बुरी बला हैं
समय का सदुपयोग जो करता है उसी व्यक्ति को समय के अच्छे परिणाम मिलते हैं। ऐसा ही हुआ जब सोनू और वाणी के एनुअल एग्जाम आने वाले थे। वाणी बहुत ही मेहनती और समय का सदुपयोग करने वाली बच्ची थी। जबकि उसका भाई सोनू बहुत ही लापरवाह और शैतान बच्चा था हर काम कल पर डालता था।
सोनू खेलता हुआ |
मम्मी- पापा हमेशा सोनू को आगे का उदाहरण देकर समझाते थे देखो सोनू बेटा तुम बड़े हो गए हो तुम्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए। समय का सदुपयोग करना चाहिये। अपनी बहन से सीखो, देखो वह समय से पढ़ती है, कोई काम कल पर कभी नहीं छोड़ती। लेकिन सोनू की दिन पर दिन कल पर काम छोड़ने की आदत बढ़ती ही जा रही थी और आखिरकार एग्जाम नजदीक आ गए।
सोनू और वाणी की परीक्षा में अब केवल 2 दिन बाकी है बच्चों अगले सोमवार से तो तुम दोनों की परीक्षाएं शुरू हो रही है ना। परीक्षा को लेकर तुम्हारी बहुत चिंता हो रही है बेटा- सोनू। तुम हमेशा आज का काम कल पर डाल देते हो पढ़ाई कल पर नहीं डालनी चाहिए।
वाणी की तरह सभी पाठ समय से पढ़ लेना ठीक है। सोनू ने कहा - मैं पढ़ लूंगा पापा अभी तो मै खेलने जा रहा हूं जब तक खेलूंगा नहीं तब तक पढ़ाई भी समझ नहीं आएगी।
अरे वाणी देखो ना। मौसम कितना अच्छा हो रहा है। चलो खेलते हैं।
मौसम सुहाना है लेकिन मुझे मेरा पाठ पूरा करना है कल परीक्षा है आओ तुम भी पढ़ लो।
देखो सोनू कुछ देर बाद बारिश भी हो सकती है और जब बारिश होती है तो घर की बिजली कट जाती है। बारिश होने वाली है। शायद रात को बिजली भी कट जाए , खेलना छोड़ो और आकर अपना पाठ पूरा कर लो वरना कल परीक्षा में क्या लिखोगे?
चिंता मत करो वाणी।
मै रात को बैठकर पाठ खत्म कर दूंगा। खेलने के बाद पढ़ने में और मजा आएगा ।
अचानक से बारिश शुरू हो जाती है और सोनू घर लौटा।
घर आकर उसने देखा घर पर ही नहीं बल्कि पूरे गांव में बिजली नही है।
कल परीक्षा में मेरा क्या होगा? मैंने तो पाठ नही पढ़ा। सोनू बुरी तरह घबरा गया।
वाणी - मैंने कहा था ना अपना पाठ पढ़ लो ।
पापा - मैंने तुम्हें एक हफ्ते पहले ही कह दिया था कि समय पर पाठ पढ़ लेना तुम्हें कभी कुछ समझ में नहीं आता। तुमने सही समय पर अपना पाठ पढ़ लिया होता तो यह सब कुछ नहीं होता।
सोनू रोता हुआ |
सोनू को अब समझ आ गया था की उसकी लापरवाही के कारण उसके पास अब पढ़ाई के लिए कोई समय नही बचा था और वह जोर जोर से रोने लगा।
वाणी - रोना बंद करो ओर मेरे साथ आओ। मैंने अपनी पढ़ाई समय पर ही पूरी कर ली थी मैं तुम्हें समझा दूंगी ओर पाठ भी याद करवा दूंगी।
वाणी ने सोनू को अच्छे से पाठ समझाया ओर याद कराया।
अगले दिन दोनो खुशी-खुशी परीक्षा देने गए ओर अच्छे अंको से उत्तीर्ण हुए।
2nd of Hindi Stories
ईमानदार लड़की
एक समय की बात है किसी शहर में सुनीता नाम की लड़की रहती थी। सुनीता के मां-बाप काफी समय से शहर में ही रहते थे। सुनीता के मां-बाप उसे बहुत प्यार करते थे वो जो भी मांगती उसे मिल जाता है
वह पढ़ाई में भी बहुत होशियार थी अपना सारा काम खुद बहुत सफाई से करती थी उसका बहुत सभ्य स्वभाव था और वह सबकी मदद करती थी। वह अपने जीवन से संतुष्ट थी। एक दिन स्कूल में अपनी कक्षा में जाते हुए उसने कुछ बच्चों को देखा वह जानना चाहती थी कि वहा क्या हो रहा है? बच्चों के पास चली गई उसने देखा कि बच्चों ने उसकी दोस्त नेहा को घेर रखा है वह सब नेहा के नए पेन को देखकर बहुत खुश हो रहे थे । उसे भी नेहा का पेन बहुत अच्छा लगा। उसने नेहा को वह पैन उसे देने को कहा। फिर उससे सुनीता ने अपनी किताब में बड़े अक्षरों में अपना नाम लिखा। घंटी बज गई
सब बच्चे सभा में चले गए। फिर अध्यापिका ने सुनीता को चाक लेन को कहा। सुनीता चाक लेन उप्पर गई जहां उसने नेहा का बेग देखा जिसमें वह पेन था उसने पेन को बैग से निकाला उससे रहा नहीं गया उसने फिर किसी के पैरों के आवाज सुनी और जल्दी में पेन को अपनी जेब में रख दिया। सुनीता ने देखा तो वह उसकी दोस्ती श्रुति थी। श्रुति की तबीयत ठीक नहीं थी। इसलिए वे सभा में नहीं जा पाई। सुनीता जल्दी से चौक लेकर नीचे गई। पेन उसी की जेब में था। सभा के बाद बच्चे कक्षा में वापस आए। नेहा ने जब बैग खोला तो उसे वो पेन नहीं मिला। वह रोने लगी और उसने अपनी अध्यापिका को शिकायत की। अध्यापिका ने सब बच्चों को बुलाया और पूछा जब चल रही थी कक्षा में कौन था? सब बच्चों ने श्रुति की ओर इशारा किया।
श्रुति को उसके बारे में कुछ नहीं पता था। अध्यापिका ने श्रुति को बहुत डांटा। श्रुति बोल ती गई कि उसे पेन के बारे में कुछ नहीं पता। पर अध्यापिका ने नहीं सुनी। फिर अध्यापिका ने श्रुति को 1 दिन का समय दिया। तुम तब तक सच बता दो नहीं तो तुम्हें प्रिंसिपल के पास जाना पड़ेगा। यह सब सुनकर सुनीता बहुत घबरा गई उसने पैन को कसकर पकड़ रखा था। पर कुछ बोल ना सकी। उस शाम जब सुनीता अपने घर पहुंची वह अपनी इस गलती के बारे में सोचती रही उसकी वजह से श्रुति को सब भुगतना पड़ा। शर्म की मारी वह रात में सो ना पाई ।
अगली सुबह सुनीता स्कूल गई कक्षा में जाते हुए उसने श्रुति को रोते देखा। सुनीता सच बताना चाहती थी। जब अध्यापिका आए उन्होंने श्रुति को सच बताने को कहा, पर सुनीता ने उनका हाथ पकड़ा और कहा पैन मेरे पास हैं। कल मैं बहुत डर गई थी। मुझे माफ कर दो मैं यह दुबारा नहीं करूंगी। कक्षा के सारे बच्चे बहुत हैरान हो गए। सुनीता को सुनने के बाद अध्यापिका ने कहा सुनीता तुम एक ईमानदार लड़की हो। अपनी गलती को सबके सामने स्वीकार करना बहुत बड़ी बात है।
हम सब गलती करते हैं पर अपनी गलती स्वीकार कर उसे सुधारना बड़ी बात है। तुम श्रुति से माफी मांगो और वादा करो कि तुम ऐसा दोबारा नहीं करोगी। फिर सुनीता ने माफी मांगी और नेहा को पैन वापस दे दिया। सब ने ताली बजाकर सुनीता की इमानदारी की प्रसंसा की। धन्यवाद बच्चों हमें उम्मीद है आपको यह कहानी बहुत पसंद आई होगी अगली बार फिर मिलेंगे एक नई कहानी के साथ।
सुनीता के खिलोने |
वह पढ़ाई में भी बहुत होशियार थी अपना सारा काम खुद बहुत सफाई से करती थी उसका बहुत सभ्य स्वभाव था और वह सबकी मदद करती थी। वह अपने जीवन से संतुष्ट थी। एक दिन स्कूल में अपनी कक्षा में जाते हुए उसने कुछ बच्चों को देखा वह जानना चाहती थी कि वहा क्या हो रहा है? बच्चों के पास चली गई उसने देखा कि बच्चों ने उसकी दोस्त नेहा को घेर रखा है वह सब नेहा के नए पेन को देखकर बहुत खुश हो रहे थे । उसे भी नेहा का पेन बहुत अच्छा लगा। उसने नेहा को वह पैन उसे देने को कहा। फिर उससे सुनीता ने अपनी किताब में बड़े अक्षरों में अपना नाम लिखा। घंटी बज गई
घण्टी |
सब बच्चे सभा में चले गए। फिर अध्यापिका ने सुनीता को चाक लेन को कहा। सुनीता चाक लेन उप्पर गई जहां उसने नेहा का बेग देखा जिसमें वह पेन था उसने पेन को बैग से निकाला उससे रहा नहीं गया उसने फिर किसी के पैरों के आवाज सुनी और जल्दी में पेन को अपनी जेब में रख दिया। सुनीता ने देखा तो वह उसकी दोस्ती श्रुति थी। श्रुति की तबीयत ठीक नहीं थी। इसलिए वे सभा में नहीं जा पाई। सुनीता जल्दी से चौक लेकर नीचे गई। पेन उसी की जेब में था। सभा के बाद बच्चे कक्षा में वापस आए। नेहा ने जब बैग खोला तो उसे वो पेन नहीं मिला। वह रोने लगी और उसने अपनी अध्यापिका को शिकायत की। अध्यापिका ने सब बच्चों को बुलाया और पूछा जब चल रही थी कक्षा में कौन था? सब बच्चों ने श्रुति की ओर इशारा किया।
श्रुति की ओर इशारा |
श्रुति को उसके बारे में कुछ नहीं पता था। अध्यापिका ने श्रुति को बहुत डांटा। श्रुति बोल ती गई कि उसे पेन के बारे में कुछ नहीं पता। पर अध्यापिका ने नहीं सुनी। फिर अध्यापिका ने श्रुति को 1 दिन का समय दिया। तुम तब तक सच बता दो नहीं तो तुम्हें प्रिंसिपल के पास जाना पड़ेगा। यह सब सुनकर सुनीता बहुत घबरा गई उसने पैन को कसकर पकड़ रखा था। पर कुछ बोल ना सकी। उस शाम जब सुनीता अपने घर पहुंची वह अपनी इस गलती के बारे में सोचती रही उसकी वजह से श्रुति को सब भुगतना पड़ा। शर्म की मारी वह रात में सो ना पाई ।
सुनीता रात को सोचते हुए |
अगली सुबह सुनीता स्कूल गई कक्षा में जाते हुए उसने श्रुति को रोते देखा। सुनीता सच बताना चाहती थी। जब अध्यापिका आए उन्होंने श्रुति को सच बताने को कहा, पर सुनीता ने उनका हाथ पकड़ा और कहा पैन मेरे पास हैं। कल मैं बहुत डर गई थी। मुझे माफ कर दो मैं यह दुबारा नहीं करूंगी। कक्षा के सारे बच्चे बहुत हैरान हो गए। सुनीता को सुनने के बाद अध्यापिका ने कहा सुनीता तुम एक ईमानदार लड़की हो। अपनी गलती को सबके सामने स्वीकार करना बहुत बड़ी बात है।
अध्यापिका |
हम सब गलती करते हैं पर अपनी गलती स्वीकार कर उसे सुधारना बड़ी बात है। तुम श्रुति से माफी मांगो और वादा करो कि तुम ऐसा दोबारा नहीं करोगी। फिर सुनीता ने माफी मांगी और नेहा को पैन वापस दे दिया। सब ने ताली बजाकर सुनीता की इमानदारी की प्रसंसा की। धन्यवाद बच्चों हमें उम्मीद है आपको यह कहानी बहुत पसंद आई होगी अगली बार फिर मिलेंगे एक नई कहानी के साथ।
3rd of Hindi stories
लालच बुरी बला
सोनपुर नामक एक गांव के जमींदार बहुत ही अच्छे स्वभाव के इंसान थे। गांव के लोग उनकी बहुत इज्जत और आदर करते थे। उस गांव में सीताराम नाम का एक तेज जुबान वाला आदमी भी रहता था। वह शराब पीकर लोगों को अपने बारे में बढ़ा चढ़ाकर कहानियां बोलकर खुश होता था उसकी बातें तो सारी हदें पार कर दे दी थी।
सीताराम |
1 दिन सीताराम बोलने लगा अगर मेरे पास जमींदार की तरह जमीन और पैसे वगैरा होते तो मजा आ जाता मैं सब की तनख्वाह दुगना कर देता और सबको जमीन भी देता। इस तरह सीताराम जो मर्जी बोलने लगा। इस बात के बारे में जमींदार को पता चला। जमींदार जी ने अगले दिन सीताराम को अपने पास बुलाया और कहा सीताराम तुम्हें जितनी जमीन चाहिए तुम ले सकते हो।
तुम यहां से जितनी दूर तक दौड़ सकते हो उतनी तुम्हारी। लेकिन एक शर्त है मेरी अभी सूर्य उदय हुआ है। सूरज के डूबने से पहले तुम्हें इसी स्थल पर वापस आना पड़ेगा। सीताराम इस बात से बहुत खुश हुआ और तुरंत भागना शुरू कर दिया - ना उसे भूख थी ना प्यास। बस उसके मन में इतनी आस थी जितना वह चले उतनी जमीन उसकी। जैसे जैसे वो आगे बढ़ा उसे और भी उपजाऊ भूमि नजर आने लगी। सुबह से अब दोपहर हो गया । उसको वापस भी जाना था लेकिन वह और तेजी से आगे ही चल रहा था।
उसे याद आया कि उसे वापस जाना है पर उसका मन नहीं भरा। आगे जो खेत उसे नजर आ रहा था उसने सोचा कि उसको पार करने के बाद ही वह वापस जाएगा और थोड़ा दूर चल कर फिर उसने वापस आना शुरु किया । अब उसकी हालत बहुत खराब हो गई थी। उसके पैर बहुत दर्द करने लगे और सांस फूलने लगी। सीताराम की जान ही निकल रही थी। बेचारा, उसका शरीर अब और आगे चलने के लिए उसका साथ ही नहीं दे रहा था जितनी भी जान उसके अंदर बची थी, उससे वह जल्दी वापस जाने की कोशिश कर रहा था। उसके शरीर का हर एक हिस्सा रो रहा था।
सूर्य भी अब धीरे-धीरे डूबने लगा । सीता राम की मंजिल और भी दूर थी। अपने प्राण को हाथ में पकड़ कर वह दौड़ने लगा उसका बदन हार मानने लगा । उसे किसी भी बात का कोई होश नहीं रहा और सिर घूमने लगा । जमींदार जी अब बस 10 फुट की दुरी पर खड़े थे। गांव के सारी प्रजा आश्चर्य से सब देख रहे थे। आखिरकार सूरज भी डूब गया और रात हो गई। सीताराम पहुंचा और एकदम से नीचे गिर पड़ा और अपनी होश खो बैठा, वह दुबारा उठ नहीं पाया।
सीताराम को अब दफनाने के लिये केवल 6 फुट जमीन की जरूरत थी। बच्चों हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमेशा जो हमारे पास है, उससे सन्तुष्ट होना चाहिए। कभी लालची नहीं बनना चाहिए।
सीताराम और जमींदार |
सीताराम थका हुआ |
उसे याद आया कि उसे वापस जाना है पर उसका मन नहीं भरा। आगे जो खेत उसे नजर आ रहा था उसने सोचा कि उसको पार करने के बाद ही वह वापस जाएगा और थोड़ा दूर चल कर फिर उसने वापस आना शुरु किया । अब उसकी हालत बहुत खराब हो गई थी। उसके पैर बहुत दर्द करने लगे और सांस फूलने लगी। सीताराम की जान ही निकल रही थी। बेचारा, उसका शरीर अब और आगे चलने के लिए उसका साथ ही नहीं दे रहा था जितनी भी जान उसके अंदर बची थी, उससे वह जल्दी वापस जाने की कोशिश कर रहा था। उसके शरीर का हर एक हिस्सा रो रहा था।
सूर्य भी अब धीरे-धीरे डूबने लगा । सीता राम की मंजिल और भी दूर थी। अपने प्राण को हाथ में पकड़ कर वह दौड़ने लगा उसका बदन हार मानने लगा । उसे किसी भी बात का कोई होश नहीं रहा और सिर घूमने लगा । जमींदार जी अब बस 10 फुट की दुरी पर खड़े थे। गांव के सारी प्रजा आश्चर्य से सब देख रहे थे। आखिरकार सूरज भी डूब गया और रात हो गई। सीताराम पहुंचा और एकदम से नीचे गिर पड़ा और अपनी होश खो बैठा, वह दुबारा उठ नहीं पाया।
सीताराम गिर पड़ा |
सीताराम को अब दफनाने के लिये केवल 6 फुट जमीन की जरूरत थी। बच्चों हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमेशा जो हमारे पास है, उससे सन्तुष्ट होना चाहिए। कभी लालची नहीं बनना चाहिए।